महिला सशक्तिकरण और भारतीय महिलाएं
संसार का सृजन किसने किया यह एक अनसुलझा रहस्य है। अलग-अलग वैज्ञानिकों और धर्मों का दृष्टिकोण इस विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण है। किंतु साक्षात तौर पर अगर कोई सृजन कर्ता है तो वो नारी है। प्रकृति (ईश्वर) ने सृजन का साहस, संरचना और शक्ति सिर्फ नारी को प्रदान किया है। बावजूद इसके समाज में सृजन करने वाली नारी शोषित है, जिस सम्मान की नारी अधिकारी है वो सम्मान पुरुष प्रधान समाज ने स्त्री को कभी नहीं दिया।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।“
अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नहीं होता है वहाँ किये सारे अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
भारत में स्त्री की देवी तुलना की गई है। शास्त्रों में भी कहा गया है, जहाँ स्त्रियों को सम्मान होता है वहाँ ईश्वर का वास होता है। किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिलाओं का समाज में क्या स्थान और स्थिति हाशिये है यह विचारणीय विषय है। कभी धर्म, कभी परंपरा, कभी कर्तव्य के नाम पर तो कभी सुरक्षा के नाम सदैव ही स्त्री जाति को अधिकारों से वंचित रखा गया है।
“शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।“
जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं ,वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव फलता फूलता और समृद्ध रहता है ।
महिला सशक्तिकरण और भारतीय महिलाएं |
कैसे मिलेगा समानता का अधिकार? |
क्यों बढ़ रहें है महिलाओं के प्रति अपराध ? |
महिला सुरक्षा के भारत में कानून |
महिलाओं का सम्मान और समानता |
कैसे मिलेगा समानता का अधिकार?
सभ्य समाज वह होता है, जिसमें हर व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास का समान अवसर मिले। लिंग भेद के कारण स्त्रियों को क्षमता होते हुए भी आगे बढ़ने से रोका जाता है, विवश किया जाता है। सामाजिक न्याय का प्रबंधन ही इस समस्या के निवारण का रास्ता है। महिलाओं को अपने अधिकार, सम्मान और समानता के प्रति जागरूक करने हेतु और सभ्य समाज की संरचना गढ़ने हेतु स्वयं पहल कर जंग लड़नी होगी ।
मन के आंगन में, सपने अठखेलियाँ लेतीं है हजार।
साकार होती नहीं, पर उम्मीदें हैं बरकरार।
सुबह सवेरे सूरज की किरणें, ऊर्जा देती है नवसवेरा।
तोड़ कर पिंजरा गुलामी का, उड़ान भरूँ स्वच्छंदता का।
महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु और महिलाओं के अधिकार के लिए जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भी मनाया जाता है। वर्तमान समय में यह दिवस लगभग सभी देशों में मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य वाट्सअप, फेसबुक या सोशल मिडिया में बधाई संदेश तक सीमित नहीं है, यह महिला अधिकार और सम्मान के जागृति का दिवस है। इसका उद्देश्य समाज की हर महिला को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार और न्याय दिलाना है। जब तक एक महिला भी शोषित और अधिकारों से वंचित तब तक यह दिवस भी अर्थहीन है।
भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB, 2019 वार्षिक रिपोर्ट) के अनुसार, भारत में 32033 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, अर्थात 88 मामले औसतन प्रतिदिन दर्ज हुए और जो मामले दर्ज नहीं होते उनकी संख्या कई गुणा है।
2014 में, दिल्ली की महिलाओं द्वारा प्रस्तुत 53% रिपोर्ट के अनुसार, एक रिपोर्ट के अनुसार….55% महिलाओं अथवा बालिका के साथ बलात्कार रोजना होता है।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, किंतु कानून का अनदेखी कर महिलाओं के प्रति अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ रहें है। ग्रामीण इलाकों की 56% महिलाएं केवल सुरक्षा कारणों से स्कूल-कॉलेज नहीं जाती है। दहेज की बलिवेदी पर हजारों लडकियों को चढ़ा दिया जाता है, दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा की शिकार प्रतिदिन लाखों लड़कियां हो रहा हैं।
हर दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से हृदय विदारक घटनाओं से अखबार के पन्ने भरे रहते हैं। नजर पुरुषों की गंदी होती है और समाज महिलाओं को पर्दा करने को मजबूर करता है। कपड़ों के हिसाब से महिलाओं को चरित्र प्रमाणपत्र (Character Certificate) दिया जाता है।
भारत का संविधान ने महिलाओं को समानता और सुरक्षा के कई अधिकार उपलब्ध कराए हैं। बावजूद इसके धरातल पर सच्चाई कुछ और है, स्त्री के साथ अन्याय तो मां के गर्भ में शुरू हो जाती है। बालिका भ्रूणहत्या, बालविवाह, दहेज, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, एसिड अटैक (Acid attack), देवदासी प्रथा, घरेलू हिंसा विधवा उत्पीड़न, लड़कियों की तस्करी (Human Trafficking) और मोबाइल और सोशल मिडिया युग में साइबर क्राइम, ब्लैकमेलिंग सरीखे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की सूची इतनी लंबी हो चुकी है, जिसका विवरण करना मुश्किल है।
21वीं सदी के शिक्षित भारत में लिंगानुपात घटने के बजाय बढ़ रहा है। दहेज और दहेज प्रताड़ना सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है। गौ हत्या को जघन्य पाप मानने वाला समाज कन्या भ्रूण हत्या को समाज की मूक सहमति देता है। घरेलू हिंसा और यौन शोषण चरम पर है, हर 15-20 सेकंड में एक औरत अपराध की शिकार हो रही है। लड़कियों की तस्करी और उन्हें देह व्यापार में ढ़केलने का धंधा चरम पर है।
क्यों बढ़ रहें है महिलाओं के प्रति अपराध ?
महिलाओं के प्रति अपराध के असंख्य कारण है, पुरुष प्रधान समाज के एक बड़े तबके की संकुचित मानसिकता और स्त्रियों में अशिक्षा व अपने अधिकारों के प्रति उदासीनता इसका मुख्य कारण है।
इसका बेहतरीन ताजा उदाहरण है, हाल फिलहाल में हाथरस, यूपी में हुई चर्चित घटना। जिसमें पीड़िता (पिछड़ी जाति) का बलात्कार हुआ और प्रशासन ने रात के अंधेरे में पीड़िता के शव को जला दिया। बलात्कारीयों (अगड़ी जाति) के समाज के लोग बजाय बलात्कारी के सामाजिक विरोध करने के, अपराधी के समर्थन में खड़े हो गए और अपराधी को बचाने में एड़ी चोटी का जोर लगाने लगे। ऐसा समाज जो बलात्कारी का समर्थन करे वहां स्त्री को न्याय मिलना कठिन है।
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया समाज को जागरूक करने का अहम माध्यम है, किन्तु मीडिया भी अपने आर्थिक पक्ष को मजबूत करने में इतना मशगूल है कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है। मीडिया भी सामाजिक संतुलन बनाने और न्याय दिलाने की कोशिश के बजाय सनसनीखेज खबर और टीआरपी (TRP) के मकड़जाल में फंसा हुआ है।
महिला सुरक्षा के भारत में कानून
भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाए गए हैं, जैसे
- चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929
- स्पेशल मैरिज एक्ट 1954
- हिन्दू मैरिज एक्ट 1955
- हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856
- इंडियन पीनल कोड 1860
- मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861
- फॉरेन मैरिज एक्ट 1969
- इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969
- क्रिस्चियन मैरिज एक्ट 1872
- मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874
- मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986
- नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990
- सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ़ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013
इसके अलावा पिता की संपत्ति में भी बेटियों को अधिकार दे कर, समाज में बेटियों को बेटों के बराबर का दर्जा देने की कोशिश की गई है। समय-समय पर कानून में संशोधन कर कानून व्यवस्था मजबूत बनाने की कोशिश की गई है। जुवेनाइल जस्टिस बिल (Juvenile justice bill) में भी बदलाव ला कर कानूनी दावंपेंच के गलत इस्तेमाल पर अंकुश लगाया गया, इसके अन्तर्गत यदि कोई 16-18 वर्ष का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उसे भी कठोर सज़ा का प्रावधान है।
मुस्लिम महिलाओं को भी तीन तलाक कानून के तहत राहत दी गई है। तीन तलाक कानून के तहत मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत तीन बार तलाक, तलाक, तलाक बोलना अपराध माना गया है। लिखित, मेल (Mail),, एसएमएस (SMS), वॉट्सऐप( whatsapp) या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक चैट (chat) के माध्यम से तीन तलाक देना अब गैरकानूनी है।
महिलाओं का सम्मान और समानता
सम्मान, समानता और न्याय महिलाओं का हक है और समाज की जिम्मेदारी है। इसे पाने के लिए हर स्त्री को चट्टान की तरह मजबूत होना होगा। शिक्षा, स्वावलंबन, अपने अधिकारों के लिए जागरूकता ही महिला सशक्तिकरण की अहम कड़ी है। कानून और आरक्षण नहीं सोच में बदलाव से समाज बदलेगा, और जब एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा तब हमारे देश प्रगति करेगा और विश्व गुरु भारत का दुनिया में परचम लहराएगा।
नारी है प्रेम स्वरूपी, ज्ञान रुप में सरस्वती।
लक्ष्मी बन समृद्धि लाती, गंगा बन करे शुद्धि।
शक्ति मुक्ति मोक्ष की द्वार का, मत कर बंदे तिरस्कार।
जय हिन्द