महान स्वतंत्रता सेनानी अझगू मुतू कोणे यादव की अमर कहानी (Maveeran Alagumuthu Kone )
(11 जुलाई 1710 – 19 जुलाई 1759)
महान सेनानायक और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी महावीरन श्री अझगू मुत्थू कोणे यादव का जन्म 11 जुलाई, 1710 ई. में तमिलनाडु के, कोट्टालंकुलम गांव, कोविलपट्टी के टूटीकोरिन जिले में हुआ था। अझगू मुत्थु कोणार यादव को सर्वइकरार के नाम से भी जाना जाता है।
अझगू मुत्थू कोणे तमिल यादव परिवार में जन्में और कहते हैं वो जन्मजात योद्धा थे। उनकी कद काठी बलिष्ठ शारीरिक बनावट योद्धा सदृश और बाहुबल अतुलनीय था। बाल्यकाल से ही उन्हें तलवार बाजी के शौकीन थे और युवावस्था मे एक अति कुशल तलवारबाज और सेनानायक बने।
पहले अझगू मदुरै राज्य के प्रधान सेनापति थे, किंतु संभवतः किसी मतभेद की वजह से उन्होंने वह पद त्याग दिया। अझगू कोणे के वीरता और बाहुबल की ख्याति समस्त प्रदेश में थी, अतः तिरुनेल्वेल्ली क्षेत्र के इट्टयप्पा (तमिलनाडु, दक्षिण भारत) के पोलीगर राजा एट्टयप्पा नाइकर ने सहर्ष उन्हें अपना के सेना नायक नियुक्त किया।
वे भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने सैनिक विद्रोह (1857 सैनिक क्रांति) के 100 साल पहले ही ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ तमिलनाडु में बगावत का बिगुल फूंक दिया। उन्हें ब्रिटिश सरकार और मरुथानायगम की सेना ने बंदी बना लिया था। उन्हें 1759 में मार डाला गया था।
ब्रिटिश हूकूमत जब भारत में पांव पसार रहे थे, तब अंग्रेजों के अन्याय पूर्ण और दमनकारी नीतियों के विरुद्ध अझगू मुत्थु ने जनचेतना जगाई और भीषण विद्रोह शुरू कर दिया। किन्तु यह संघर्ष का सफर कांटों से भरा था।
1750-1756 चले अझगू के विद्रोह को वृहत क्रांति का रूप लेते देख, 1756 में इस विद्रोह के दमन हेतु ब्रिटिश हुकूमत ने उनके राज्य पर कब्जा कर लिया था।
एट्टायपुरम के युद्ध में शिकस्त के बाद भी कोणे, परमवीर साहसी अझगू और राजा एट्टयप्पा नाइकर ने जाबांज सिंह की भांति जंगलों मे शरण लेकर क्रांति की लौ जलाए रखें। राज परिवार और अपनी सेना के 7 जनरल व 255 अन्य साथियों के साथ उन्होंने जंगल में शरण लिया और ब्रिटिश हूकूमत के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा।
किंतु पठनयकनूर के कुछ गद्दारों के विश्वासघात किया और अझगू और उनके साथी क्रांतिकारियों से संबंधित सूचना दे दिया।
परिणामस्वरूप अझगू मुत्थु कोणे यादव, उनके 7 जनरल और अन्य सभी साथियों के झसाथ बीरांगिमेडु नामक स्थान पर अंग्रेजों के साथ भीषण संघर्ष हुआ।
किंतु अंग्रेजों के आधुनिक हथियार से लैस विशाल सैन्य बल की, वीर अझगू और उनकी मुट्ठीभर सेना ने दांत खट्टे कर दिया। अंततः अझगू कोणे व उनके साथियों को बाद मे बंदी बना लिया था।
भविष्य में भारतीय, अंग्रेजी हूकूमत के विरुद्ध विद्रोह करने का साहस ना कर सके, इसलिए नृशंसता का परिचय देते हुए 1759 को बंदी बनाए गए सैनिकों के दाहिने हाथ को अंग्रेजों ने कटवा दिया और महावीर अझगू मुत्थु कोणे यादव को तोप के मुंह से बांध कर उड़ा दिया गया।
भारत माता के सच्चे सपूत महावीरन अझगू मुत्थु यादव ने मृत्यु को सहर्ष गले लगाया, किंतु ब्रिटिश हुकूमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके। हंसते हंसते मातृभूमि के रक्षार्थ शहीद हो गए।
अझगू मुत्थु यादव को प्राप्त सम्मान
• भारत के प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी अझगू मुत्थु की याद में, तमिलनाडु सरकार हर साल 11 जुलाई को एक पूजा समारोह आयोजित करती है।
• 2012 में अझगू मुत्थु के जीवनी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म रिलीज की गई, जिसमें महावीरन के जीवन गाथा को चित्रित करने की कोशिश की गई थी
• इस वृत्तचित्र के अनावरण समारोह में तत्कालीन वित्तमंत्री पी॰ चिदम्बरम ने कहा-
“अझगू मुत्तू कोणे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले अनेकों सेनानियों मे से एक थे जिन्होने विदेशी शासन के खिलाफ आम जनता की चेतना को जागृत किया “
• पी चिदंबरम ने, इस अवसर पर कोणे के सम्बद्ध यादव समुदाय पर आधारित एक शोध पत्र का विमोचन भी किया और कहा-
“स्वाधीनता संग्राम हेतु कोणे के प्रयासो से कालांतर मे भारत के स्वतंत्रा संग्राम की एक संघर्ष शृंखला निर्मित हुई व भारत की स्वाधीनता मे उनका योगदान अतुलनीय है।”
• इस समारोह में चिदंबरम ने कोणे के वंशज ‘सेवतसामी यादव’ को सम्मानित भी किया।
• भारत सरकार ने श्री अझगुमूत्तु कोणे यादव जी को श्रद्धांजलि समर्पित करने हेतु, 26 दिसंबर 2015 डाक टिकट जारी किया। अझगुमूत्तु कोणे डाक टिकट का विमोचन तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने किया था।
यह दुर्भाग्य की बात है, कि इस महान दक्षिण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के अविस्मरणीय योगदान को भारतीय इतिहासकारों ने संभवतः उचित स्थान नहीं दिया। 1857 सैनिक विद्रोह से 100 वर्ष पू्र्व ही अझगू मुत्थु कोणे यादव ने स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका और अंतिम सांस तक ब्रिटिश हूकूमत के खिलाफ संघर्ष करते रहे। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। किंतु इतिहास के पन्नों ने इस महावीर को उचित न्याय सम्मान और उल्लेख देने में कंजूसी का परिचय दिया।
जय हिंद