(आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक)
“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते”।।
शारदीय नवरात्र परिचय
शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाते हैं। नवरात्र मुख्य रूप से दो होते – वासन्तिक और शारदीय। वासन्तिक में भगवान विष्णु की उपासना प्रधान होती है और शारदीय में शक्ति की उपासना। वैसे दोनों नवरात्र मुख्य एवं व्यापक हैं। दोनों में दोनों का उपासना बहुत ही महत्वपूर्ण है, आस्तिक लोग दोनों की उपासना करते हैं।
भगवान श्री रामजी ने सर्वप्रथम शारदीय नवरात्र पूजा समुद्रतट पर प्रारंभ किया था। इसके बाद विजयादशमी के दिन श्री राम चन्द्र जी लंका विजय के लिए प्रस्थान किये थे और दसमुख रावण का वध किया था।
क्या है देवी पक्ष?
शारदीय नवरात्र, विजयादशमी और शरद पूर्णिमा – यह तीनों ही परस्पर सूत्र में बंधे हैं। इसलिए आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक को शास्त्रों में देवी पक्ष कहा गया है।
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या को पितृपक्ष कहा गया है इसीलिए पहले पितरों के श्राद्ध तर्पण के उपरांत ‘देवी पक्ष’ प्रारंभ होता है। माता पिता के प्रसन्न होने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।
महालया और महालया की महत्ता
आश्विन कृष्ण अमावस्या ‘महालया अमावस्या’ के नाम से विख्यात है। इसी तिथि को पहले पितृकर्म संपन्न होते हैं और उसके बाद ‘देवी-पक्ष’ प्रारंभ होता है। यह ‘संगम तिथि’ तीर्थ स्वरूप होती है। महालया पावन तिथि शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
कब मनाते हैं नवरात्र?
सामान्यतः नवरात्र चार हैं।
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक
- आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक (इस नवरात्र के बाद हरिशयनी एकादशी होती है)
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से विजयादशमी तक ( इसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी देवोत्थान- प्रबोधिनी एकादशी) और
- माघ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक सारस्वत-नवरात्र
इन चारों में वासन्तिक नवरात्र (चैत्र में) और शारदीय नवरात्र (आश्विन में) यह दोनों की बहुत प्रसिद्ध है और बड़े तौर पर मनायी जाती है। शेष दो गुप्त नवरात्र शक्ति पीठों में ज्यादातर मनाए जाते हैं।
क्यों नवरात्र कहते हैं?
रूद्रयामल तंत्र के अनुसार-
‘नवशक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यत’॥
नौ शक्तियों से युक्त होने के कारण इसे नवरात्र कहा गया है।
और
“नवभिः रात्रिभिः सम्पद्यते यः स नवरात्रः।।
नवधा भक्ति, नवग्रह, रामनवमी, सीतानवमी ( वैशाख शु्क्ल नवमी) ये सभी नौ शब्दों की महत्ता के द्योतक हैं।
देवी दुर्गा दुर्गतिनाशिनी होतीं हैं। मां दुर्गा रोग, शत्रु, भय, सभी विकारों का नाश करती हैं। मां दुर्गा शक्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, शांति और मोक्ष दायिनी देवी हैं
इस उपासना में वर्ण जाति वैशिष्ट्य नहीं है सभी वर्ण एवं जाति के लोग माता भगवती दुर्गा और अपने इष्ट देव की उपासना करते है। देवी की उपासना व्यापक है।
कैसे करते हैं नवरात्र पूजन?
- दुर्गा पूजा प्रतिपदा से नवमी तक रखते हैं। कुछ लोग अन्न त्याग देते हैं और फलाहार करते हैं और कुछ एक भुक्त रह कर शक्ति की उपासना करते हैं।
- कुछ लोग दुर्गा सप्तशती का सकाम या निष्काम भाव से पाठ करते हैं। संयमित रहकर पाठ करना आवश्यक है, अतः यम नियम का पालन करते हुए भगवती दुर्गा की आराधना, पूजन और पाठ करना चाहिए।
- नवरात्र व्रत का अनुष्ठान करने वाले जितना ही संयम, नियम, अंतर्बाह्य शुद्ध रखेंगे उतना ही उनकी पूजा सफलता और सिद्ध होगी यह निश्चित है।
नवरात्र पूजन कैसे करते हैं? अभिजीत मुहूर्त क्या है?
- प्रतिपदा से नवरात्रि प्रारम्भ होती है। अमावस्या युक्त प्रतिपदा ठीक नहीं मानी जाती है।
- नौ रात्रियों तक व्रत करने से नवरात्र व्रत पूर्ण होता है। तिथि की ह्रास- वृद्धि से इसमें न्यूनाधिकता नहीं होती।
- प्रारंभ करते समय यदि चित्रा और वैधृति योग हो तो उसकी समाप्ति होने के बाद व्रत प्रारंभ करना चाहिए।
- देवी का आह्वान, स्थापन और विसर्जन यह तीनों प्रातः काल में होनी चाहिए।
- अगर चित्रा, वैधृति योग अधिक समय तक हो तो, उसी दिन अभिजीत मुहूर्त (दिन के आठवें मुहूर्त यानि दोपहर एक घड़ी से पहले एक घड़ी बाद तक के समय) आरंभ करना चाहिए।
नवरात्र पूजन आरंभ कैसे करें?
- आरंभ में पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ बो दें। फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार बनवाए गए सोने, चांदी या मिट्टी के कलश स्थापित करें।
- कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मृत्तिका, पाषाण या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें।
- मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति होने की आशंका हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।
- मूर्ति ना हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और दोनों पार्श्वों में त्रिशूल बनाकर दुर्गा जी का चित्र, पुस्तक और शालिग्राम को विराजित करके विष्णु जी का पूजन करें।
- पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं।
- नवरात्र के आरंभ में स्वस्तिवाचन शांति पाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम गणपति की पूजा करके, षोडश मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरूण का विधिवत पूजन करें।
- फिर माता दुर्गा की मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें।
- फिर अपने इष्टदेव (प्रधान मूर्ति)– श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीलक्ष्मी-नारायण, शिव जी या भगवती दुर्गा देवी आदि प्रधान मूर्ति की पूजा करें।
- दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन और “श्रीदुर्गा सप्तशती” का पाठ मुख्य अनुष्ठेय कर्तव्य है।
पाठ विधि और कन्या पूजन महिमाः
श्री दुर्गा सप्तशती पुस्तक की पाठविधि —
“नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्”।।
इस मंत्र से पंचोपचार पूजन कर यथाविधि पाठ करें।
- देवी व्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य अनुसार नवरात्र भर प्रतिदिन या समाप्ति के दिन नौ कुमारी कन्याओं के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर गंध पुष्प आदि से अर्चना करें, आदर के साथ यथा रुचि मिष्ठान और भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्र आदि से सत्कृत करना चाहिए।
- शास्त्रानुसार एक कन्या के पूजन से ऐश्वर्य की, दो की पूजा से भोग और मोक्ष की, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ, काम –त्रिवर्ग की, चार की अर्चना से राज्य पद की, पांच की पूजा से विद्या की, छः की पूजा से षटकर्मसिद्धि की, सात की पूजा से राज्य की, आठ की अर्चना संपदा की और नौ कुमारी कन्याओं की पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
- कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं के अर्चन का प्रावधान है। दस वर्ष से ऊपर वालों की आयु वाली कन्या का कुमारी पूजन वर्जित माना गया है।
- चना, हलवा, मिष्टान, खीर और नैवेद्य आदि का भोग देवी को लगाकर कन्याओं को भोजन कराएं।
- दो वर्ष से की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडीका, आठ वर्ष शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रा स्वरूपा होती है।
दुर्गा पूजा में प्रतिदिन का वैशिष्ट्य (विशेष कर) रहना चाहिए–
- प्रतिपदा को केश संस्कारक द्रव्य जैसे आंवला, सुगंधित तेल आदि केश प्रसाधन संभार।
- द्वितीया को बाल बांधने और गूंथनेवाले रेशमी सूत फीते आदि
- तृतीया को सिंदूर और दर्पण आदि
- चतुर्थी को मधु, अर्क, तिलक, नेत्र अंजन
- पंचमी को अंगराग चंदन आदि एवं आभूषण
- षष्ठी को पुष्प और पुष्पमाला आदि समर्पित करें
- सप्तमी को ग्रहमध्य पूजा
- अष्टमी को उपवास पूर्वक पूजन
- नवमी को महापूजा और कुमारी पूजन करें।
- दशमी को पूजन के अनंतर पाठ कर्ता की पूजा कर दक्षिणा दें एवं आरती के बाद विसर्जन करें।
- श्रवण नक्षत्र में विसर्जन पूजन प्रशस्त किया जाता है।
- दशमांश हवन तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत की समाप्ति करें।
- विजयादशमी के सुबह ‘अपराजिता लता’ के पूजन का प्रावधान है। विशिष्ट पूजा प्रार्थना के बाद विसर्जन, जयंती धारण, अपराजिता धारण आदि किये जाते हैं।
- फिर कलश के जल से उसी पंचपल्लव से महाभिषेक किया जाता है। इस प्रकार विजयादशमी पूजन सुसम्पन्न होता है।
शक्तिशाली मंत्र और श्लोक जिनका माता दुर्गा की पूजा और उपासना में विशेष महत्व है:
1. सर्व विघ्न नाश हेतु और महामारी नाश का मंत्रः
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते॥
2. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
3. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
4.विपत्तियों के नाश के लिए
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
5.सामूहिक कल्याण के लिए
देव्या यया ततमिदं जग्दात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।
तामम्बिकामखिलदेव महर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥
6.प्रसन्नता प्राप्ति के लिए
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव॥
7. पापों को मिटाने के लिए
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योनः सुतानिव॥
8. भक्ति प्राप्ति के लिए
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
9. उपद्रवों से बचने के लिए
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
10. अशुभ प्रभाव और भय का विनाश करने के लिए
यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
नवरात्र पूजा सामग्री –
- लाल चुनरी
- लाल वस्त्र
- मौली
- रोली
- दीपक
- घी/ तेल
- गंगाजल
- नारियल
- साफ चावल
- कुमकुम
- फूल या फूल माला
- देवी की प्रतिमा या फोटो
- पान
- सुपारी
- लौंग
- इलायची
- बताशे या मिसरी
- कपूर
- दीपक
- धूप
- फल
- नैवेद्य
- कलावा
- श्रृंगार का सामान
- सिंदूर
नवरात्र पूजन के साथ नवमी के हवन और विजयादशमी भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी विस्तृत जानकारी हम अगले ब्लॉग में करेंगे।
जय मां दुर्गा
जय हिंद