कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे बड़ी एकादशी होती है, इसे देवोत्थान, देव उठनी और हरि प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और चार मास के विश्राम के बाद इस तिथि को श्रीहरि जागते हैं। इस दिन के निर्जल उपवास का विशेष महत्व है। यह सर्व मनोकामना सिद्ध करनेवाली, फलदायी, मोक्षदायिनी एकादशी है।
हरि-प्रबोधिनी-एकादशी कथा
एक समय क्षीरसागर मे शेषनाग शैय्या पर विश्राम कर रहे विष्णु भगवान से माता लक्ष्मी ने कहा, ” स्वामी जब आप जागते हैं तो दिवा-रात्रि, मास-वर्षों तक जागते हैं। जब आप सोते हैं तब हजारों वर्ष सोते हैं। आप के इतने वर्षों के निद्रा काल में आसुरी शक्तियां जगत का नाश करती हैं। इसलिए आप प्रतिवर्ष विश्राम करें और अपने भक्तों को कृतार्थ करें। श्रीहरि को माता की बात सही लगी, माता लक्ष्मी को भी दिन-रात प्रभु की सेवा से अवकाश नहीं मिलती । यह सोच प्रभु ने निर्णय लिया अब वो प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु मेंं चार मास शयन करूंगा। यह समय माता लक्ष्मी और देवगणों के लिए भी अवकाश काल होगा। श्री हरि की यह निद्रा अल्पनिद्रा कहलाती है।
प्रभु की अल्पनिद्रा काल बड़ी ही पुण्य वर्धक समय होता है। इस काल मेंं श्री हरि के भजन, जप और प्रभु के सेवारत रहने से भगवान अति प्रसन्न होते है और माता लक्ष्मी के साथ उसके घर मेंं निवास करते हैं। देवोत्थान एकादशी व्रत अक्षय पुण्यदायी व्रत है। इसका फल कई जन्म तक मिलता है। इस दिन एकादशी व्रत के साथ तुलसी विवाह का भी प्रावधान है।
पूजन विधि
- स्थायी लक्ष्मी और मोक्ष की कामना करनेवाले भक्त जन आज घर पर साफ -सफाई करें। ब्रह्म मूहुर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर मुख्य द्वार या आंगन में रंगोली बनाए। व्रत का संकल्प लेकर पूजन की तैयारी करें।
- गन्ने का मंडप बनाकर इसे सुंदर लाल कपड़े से आच्छादित कर मंडप बनाए और सजाए। तुलसी जी के समक्ष भगवान शालिग्राम या विष्णु जी की फोटोज रखें। तुलसी माता का ऋंगार करें, लाल चुनरी ओढ़ाएं , धूप, दीप, नैवेघ, ऋंगार का सामान व पुष्पादि से पूजा करें।
- भगवान शालिग्राम को पीले वस्त्र अर्पित करें, अक्षत, रोली, मौली, तुलसी दल, दीप, धूप-गंधादि, मौसमी फल और पील रंग के नैवेद्य चढ़ाएं। शंख -घंटी बजाकर , भजन – कीर्तन से प्रभु की पूजा करें।
- शालिग्राम जी को सात बार तुलसी जी के चारों ओर घुमा कर , तुलसी जी को सिंदूर लगाऐ और भजन, कीर्तन, मंगलगीत गाकर विवाह संपन्न करें।
- संध्या मे विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- इस दिन निर्जल व्रत करें। जो व्रत नहीं कर सकते वो सात्विक भोजन करें।
- एकादशी को अन्न, विशेषतः चावल ग्रहण निषेध है।
- द्वादशी को पारण करें। दान-दक्षिणा करें।
- द्वादशी के दिन में सोना नहीं चाहिए। अगर नींद आए तो सिरहाने तुलसी दल रख लें।
- तुलसी हरिप्रिया है। स्वर्ग मेंं विष्णु भगवान के साथ जो स्थान माता लक्ष्मी का है, वही स्थान पृथ्वी पर तुलसी जी का है। अतः माता को प्रणाम कर अपना और अपने प्रियजनों की मंगलकामना करें।
- सभी देवताओं को प्रणाम कर प्रसाद वितरण करें।
क्या करें इस दिन :
- विष्णु जी का देवोत्थान एकादशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल या दूध से अभिषेक करने से प्रभु प्रसन्न होते हैंं। इससे सारे पाप धुलता है और शरीर के हर रोग-दोष दूर होता है। अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- इस दिन लक्ष्मी-नारायण के आह्वान व पूजन से आथिर्क समस्याओं से मुक्ति मिलती है और धन लाभ होता है।
- निर्जल व्रत यश , कीर्ति, वैभव, धन-संपत्ति, संतान, उन्नति और मोक्षदायिनी होती है। निर्जल संभव ना हो तो फलाहार करें।
- विष्णुजी और तुलसी के समक्ष दीपक अवश्य जलाएं। हो सके तो अखंड दीप जलाए। संध्या के समय पूरे घर में दीप प्रज्जवलित करें।
- गरीब को दान दें भोजन कराए। गाय को चारा दें।
क्या नहीं करें इस दिन :
- आज के दिन पत्ते ना तोड़े, पेड़-पौधे नहीं काटे ।
- चावल / गोभी/ पालक/ शलगम खाना इस दिन निषेध है।
- मन में विकारात्मक सोच ना लाए।
- दिन के समय नहीं सोये।
- बाल और नाखून नहीं काटे।
- मौन व्रत रखे या कम बोलेंं।
श्रीहरि की भक्ति और उनके जप के साथ गोविंद को नमन् कर पूजा संपन्न करें।
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